वरिष्ठ पुरातत्वविद डॉ. नारायण व्यास के अनुसार सतधारा के स्तूप भी सांची के समकालीन ही है और इनका निर्माण भी सम्राट अशोक द्वारा ही करवाया गया था। तीसरी शताब्दी में बने यह स्तूप 13 मीटर तक ऊंचे हैं। यहां के स्तूपों पर रॉक पेंटिंग्स भी बनी हुई है। मुख्य स्तूप क्रमांक 1 ईंटों से निर्मित है, जिससे बाद में पत्थरों से ढंका गया है। यहां पर दो बौद्ध विहार भी बने हुए हैं। सतधारा के पास हलाली नदी बहती है, जो आगे चलकर बैस नदी बन जाती है। यहां पर पहले सात धाराएं रही होंगी, इसी कारण ही इस क्षेत्र का नाम सतधारा पड़ गया। सतधारा की ऊंचाई से हलाली नदी की खूबसूरती देखते ही बनती है। सांची आने वाले पर्यटक सतधारा भी आएं इसके लिए पर्यटन विभाग ने प्लान बनाया है। जिसके चलते यहां 25 लाख का प्रस्ताव बनाकर भेजा गया है। इसमें स्तूपाें के चारों ओर पाथवे बनाया जाएगा।
स्तूपों के पास बहती है हलाली नदी, इसलिए नाम पड़ा सतधारा
30 स्तूप: सतधारा में भी सांची की तरह छोटे-बड़े स्तूप बने हैं 28 हेक्टेयर: क्षेत्र में छोटे-बड़े मिलाकर सभी स्तूप फैले हुए हैं 13 मीटर तक ऊंचे: हैं तीसरी शताब्दी में बने यह स्तूप
देखरेख के अभाव में जर्जर हो गए कई स्तूप
सतधारा के स्तूप वैसे तो विश्व प्रसिद्ध सांची के स्तूप से 14 किमी दूर स्थित है, लेकिन देखरेख के अभाव में यहां के कई स्तूप जर्जर हो गए हैं। हालांकि पुरातत्व विभाग द्वारा कुछ स्तूपों का जिर्णाद्धार किया गया।
पाथ-वे निर्माण के लिए भेजा गया है प्रस्ताव
^सतधारा के स्तूपों के चारों ओर पाथ-वे निर्माण के लिए 25 लाख रुपए का प्रस्ताव बनाकर भेजा गया है। मंजूरी मिलते ही यहां पर इसका निर्माण कराया जाएगा। इसके बनने के बाद पर्यटकों को यहां पर घूमना-फिरना आसान हो जाएगा।
-संदीप मेहतो, स्तूप प्रभारी पुरातत्व विभाग, सांची।